संगीत, मनुष्य के अंतरात्मा की एक मधुर आवाज है।भारतीय शास्त्रीय संगीत एक प्राचीन कला है, जिसकी ध्वनि अन्तर्मन को प्रफुल्लित करती है। इस ब्लॉग में, हम भारतीय शास्त्रीय संगीत का इतिहास, प्रमुख शैलिया, गतिविधियों और इसके प्रमुख संगीतकारों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
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भारतीय शास्त्रीय संगीत का इतिहास :-
भारतीय शास्त्रीय संगीत का इतिहास विशाल और समृद्ध है। इसकी मूल उत्पत्ति वेदों में पाई जाती है, ऐसा शास्त्र में बताया गया हे ! जिनमें संगीत को “नाद ब्रह्मा” कहा जाता है। पर इसकी उत्पत्ति कैसे हुई इसमें काफी मतभेद हे !
कुछ लोग ये भी मानते हे की भारतीय संगीत की शुरुवात श्री भगवान ब्रह्मदेव द्वारा हुई ।
ऋषिराज नारद मुनि ने ब्रह्मदेव को प्रसन्न किया था, तब ब्रह्मदेव ने उनको वरदान में शास्त्रीय संगीत दिया जो पहले एक दैवी शक्ति थी । और वही संगीत ब्रह्मदेव ने सरस्वती देवी को भी दिया हे ।
इसीलिए सरस्वती देवी के हात में तानपुरा , वीना या फिर सितार रहता है ।
इतिहास कारो के मुताबिक भारतीय संगीत की शुरुवात 15 वी सदी में हुई। ग्वालियर घरानेके संस्थापक उस्ताद हद्दू खान और उस्ताद हस्सू खान ने गुरु शिष्य परंपरा शुरू की थी । ऐसा इतिहास में बताया गया हे ।
इसके बाद की कालगति में, भारतीय शास्त्रीय संगीत ने धीरे-धीरे प्रगति की। ग्रामीण संगीत, दरबारी संगीत, और मंदिरी संगीत के विभिन्न आवाजों का विकास हुआ। भारतीय संगीतकारों ने अपनी अनुभूति को संगीत के माध्यम से व्यक्त किया और इसे संगठित रूप में प्रस्तुत किया।
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भारतीय शास्त्रीय संगीत के दो प्रमुख प्रकार हैं: हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और कर्नाटक शास्त्रीय संगीत। ये दोनों प्रकार विभिन्न विकास और परंपराओं के साथ भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विकसित हुए हैं।
1. हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत:
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत उत्तर भारतीय संस्कृति का हिस्सा है।
हिंदुस्तानी संगीत में स्वर और ताल का महत्वपूर्ण स्थान होता है। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में ख्याल, ध्रुपद, ठुमरी, ताराना, ग़ज़ल,
और बहुत प्रकार गाए और बजाए जाते है।
2. कर्नाटक शास्त्रीय संगीत:
कर्नाटक शास्त्रीय संगीत दक्षिण भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। इसका विकास प्राचीन काल से हो रहा है और यह संगीत की रचनाएं, राग, ताल और गति पर बल देता है। कर्नाटक शास्त्रीय संगीत में संगीत छंद, तालमान, गति, राग और तान का विशेष महत्व होता है। कर्नाटक शास्त्रीय संगीत में विणा, वीणा, मृदंगम, घटम, वीणा, गोतुवाद्यम, विद्वंस आदि साधन प्रयोग किए जाते हैं।
ये दोनों प्रमुख प्रकार अपने अद्वितीय संगीतीय रूप, राग-रंग और ताल-मान से भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को प्रदर्शित करते हैं। दोनों प्रकार के संगीत प्रणाली विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण मान्यता प्राप्त कर चुकी हैं और संगीत प्रेमियों के बीच बड़ी प्रशंसा पाई हैं।
भारतीय शास्त्रीय संगीत एक अद्वितीय और उत्कृष्ट संगीत परंपरा है, जिसमें संगीतकारों और संगीतप्रेमियों के लिए एक अपार सम्पदा है। इसकी मौलिकता, रूपांतरणशीलता, और अनंत सामरस्य ने उसे दुनिया भर में प्रशंसा का विषय बनाया है!