वाद्यों के प्रकार

भारतीय वाद्यों को चार श्रेणियों में बाँटा गया है- 1. तत वाद्य सुषिर वाद्य, 3. अवनद्ध वाद्य और 4. घन वाद्य।

वाद्यों के प्रकार

तत वाद्य

इस श्रेणी के वाद्यों में तारों के द्वारा स्वरों की उत्पत्ति होती है।

कुछ लोग इनके भी दो प्रकार मानते हैं- 1. तत वाद्य, 2. वितत वाद्य (पर इस विभाजन का ज्यादा प्रचार नहीं है)।

तत वाद्यों की श्रेणी में तार के वे वाद्य वा साज़ आते हैं, जिन्हें मिज़राब या अन्य किसी वस्तु की टंकोर देकर बजाते हैं. जैसे— ‘वीणा‘ ‘सितार‘, ‘सरोद’, ‘तानपूरा‘, ‘इकतारा‘, ‘दुतारा‘ इत्यादि) दूसरी वितत वाद्यों की श्रेणी में गज़ की सहायता से बजने वाले साज़ आते हैं। जैसे— ‘इसराज’, ‘सारंगी‘, ‘वॉयलिन‘ इत्यादि। तत वाद्यों को ‘तंतु वाच’ ‘तंत्री वाद्य’ या ‘तार वाद्य’ भी कहा जाता है।

सुषिर वाद्य

इस श्रेणी में फूँक या हवा से बजने वाले वाद्य आते हैं; जैसे- बाँसुरी, हारमोनियम, क्लैरिनेट, शहनाई, बीन, शंख इत्यादि ।

अवनद्ध वाद्य

इस श्रेणी में चमड़े से मढ़े हुए ताल-वाद्य आते हैं; जैसे- मृदंग, तबला, ढोलक, खंजरी, नगाड़ा, डमरू, ढोल इत्यादि ।

घन वाद्य

इस श्रेणी के वाद्यों में चोट या आघात से स्वर उत्पन्न होते हैं, जैसे- संतूर, जलतरंग, मॅजीरा, झाँझ, करताल, घंटातरंग, इत्यादि।

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