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Sitar

सितार संगीत-रसिक मुग़ल सम्राट मुहम्मदशाह ‘रंगीले’ का राज्यकाल 1719-1748 ई० तक है। इस युग के कलाकारों में ‘सदारंग‘ संगीतज्ञ – शिरोमणि थे। उनका वास्तविक नाम नेमत खाँ था और ये निर्मोल खाँ के पुत्र थे। सदारंग के छोटे भाई ‘खुसरो ख़ाँ’ भी संगीत के मर्मज्ञ थे। उस युग के एक लेखक दरगाह कुली खाँ ने […]

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Flute

बाँसुरी यह भारत का अति प्राचीन फूँक से बजने वाला सुषिर श्रेणी का वाद्य है। भगवान् कृष्ण ने अपने अधरों से लगाकर तो मानो इसे अमरत्व प्रदान कर दिया है। आजकल बाँसुरी कई प्रकार की मिलती हैं, किन्तु हम यहाँ पर उसी का विवरण दे रहे हैं, जिसमें छह सूराख़ होते हैं और जिसकी ट्यूनिंग

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तालवाद्य वादकों के गुण-दोष

तालवाद्य वादकों के गुण-दोष शास्त्र में ताल-वाद्यों से सम्बन्ध रखने वाले वादक के गुण-दोष इस प्रकार बताए गए हैं- तालवाद्य वादकों के गुण • ताल, समय और स्वर का ज्ञान हो, जिसके हाथों में सौष्ठव, लाघव, बाहुल्य तथा दृढ़ता हो। जो गीत में दक्ष और वाद्य-वादन, कला, लय, ग्रह एवं मोक्ष का ज्ञान रखने वाला

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Pakhawaj

मृदंग, खोल या पखावज नटराज शंकर का डमरू सबसे प्राचीन अवनद्ध वाद्य है, उसीके आधार पर मृदंग की उत्पत्ति हुई। ‘मृदंग’ की प्राचीनता का प्रमाण ऋग्वेद (513316) से मिलता है जिसमें ‘वीणा’, ‘मृदंग’, ‘वंशी’ और ‘डमरू’ का वर्णन आया है। पुरातन काल में ‘मृदंग’ को ‘पुष्कर’ वाद्यों की श्रेणी में प्रथम वाद्य कहा जाता था,

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Tabla

तबले की उत्पत्ति तबले की उत्पत्ति के विषय में विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं जो अधिकतर निराधार हैं। डॉ० लक्ष्मीनारायण गर्ग के अनुसंधानात्मक विवरण के अनुसार तबला उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में अरब से आया जिसे वहाँ ‘अतबल’ कहा जाता था। फारसी में इसे ‘तब्ल:’, मिस्र में ‘तब्ल’ और हिन्दुस्तान में ‘तबला’, ‘तबलें’ या ‘तबली’

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Tanpura – Musical Instrument

Tanpura :- Musical Instrument तानपूरा या तम्बूरा भारतीय शास्त्रीय संगीत में ‘तानपूरा‘ या ‘तम्बूरा‘ एक महत्त्वपूर्ण तत वाद्य है। शास्त्रीय गायन इसके बिना फीका सा लगता है। ‘तानपूरा’ में कोई सरगम या गीत नहीं निकाला जाता, बल्कि इसके तारों को झंकृत करके संगीतकार अपने राग की आधार भूमि के रूप में इसका इस्तेमाल करता है।

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Types Of Instruments

वाद्यों के प्रकार भारतीय वाद्यों को चार श्रेणियों में बाँटा गया है- 1. तत वाद्य सुषिर वाद्य, 3. अवनद्ध वाद्य और 4. घन वाद्य। वाद्यों के प्रकार तत वाद्य इस श्रेणी के वाद्यों में तारों के द्वारा स्वरों की उत्पत्ति होती है। कुछ लोग इनके भी दो प्रकार मानते हैं- 1. तत वाद्य, 2. वितत

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